एक छोटो सो छोरो खेलबा कै लियां घरां सैँ निकळगो। गैला मैं बीनै गणेशजी मिल्या बै पूछणै लाग गा कि छोरा कठे जा रयो है ? तो छोरो बोल्यो कि म्हारी माँ सैँ लड़ाई होगी ई खातर गणेशजी कै कनै जा रयो हूँ , इयां कहताँ कहताँ ई बो जंगल मैं चल्यो गो। गणेशजी कै बिचार होगो कि ओ तो म्हारै नाम सैँ जा रयो है जै ईकै कांई होगो तो आपणों तो नाम ही ख़राब हो जासी। गणेशजी फटाफट बालक को रूप धरयो अर बीके कनै जाकै फेर पूछ्यो कि छोरा कठे जा रयो है ? तो बो बोल्यो बिन्दयाकजी सैँ मिलण जाऊं। तो गणेशजी बोल्या मैं ई बिन्दायक हूँ। छोरो बोल्यो कि मैं तो कोनी मानूं कि थे बिन्दायक हो। गणेशजी कह्यो कि कुछ भी मांग कै देख ले। छोरो कह्यो मैं के मांगू ? तो बिन्दयाकजी बोल्या तू माँगै जोई मांग ले। पण एक बार मांग लै। तो छोरो बोल्यो....... पिलंग निवार को, पोछो गजराज को, दाळ-भात गीवाँ का फलका ऊपर मूठी भर खांड की, परसण आळी असी मांगूं ज्यों फूल गुलाब को । जद बिन्दयाकजी बोल्या छोरा तू तो सब कुछ मांग लियो। जा तेरै इयां ई हो जासी। छोरो जद घरां पाछो आयो तो देख्यो कि एक छ्योटी सी बिनणी पिलंग पर बैठी है अर घर धन-धान सैँ भरगो है। छोरो आपकी माँ सैँ बोल्यो, माँ बिन्दयाकजी तो आपां नै कित्तो दे दियो। माँ भोत खुस हुई
अर बोली..... हे बिन्दयाकजी महाराज जिसो म्हारा छोरा नै दियो बिसो सबनै दीज्यो। कहताँ सुनाताँ नै हुंकारा भरतां नै।
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थारा बिचार अठे मांडो सा ....