कहाणीँ- 1
एक विनायकजी महाराज चुटकी माय चावल और चमची माय दूध लेर घूम रहया हा। बै सबनै कहता फिर रहया हा कै कोई म्हाने खीर बणा दयो........ कोई म्हाने खीर बणा दयो। जणा एक बुढिया माई बोली की ल्या मैं बणा दयूं। बा एक कटोरी लेर आई तो गणेशजी बोल्या बुढिया माई कटोरी के ल्याई है बड़ी भगोनी चढ़ा। जणा बुढिया माई बोली इत्ता बड़ा मैं के बणावगो आ कटोरी भोत है। जद बिन्दायकजी बोल्या की तू चढ़ा कै तो देख। ईयाँ कहताँ ई बुढिया माई बड़ी भगोनी चढ़ा दी। बी मैं गेरतां ई बा दूध की भरगी। अब बिन्दयाकजी महाराज बोल्या की मैं बारांनै जाकै आऊं जद तक तू खीर बणा कै राखिये। खीर बण कै त्यार होगी पण बिन्दयाकजी आया कोणी जको बुढिया माई को मन चालगो। बा दरवाजा कै पीछानै बैठ कै खीर खांण लाग गी अर बोली की जय बिन्दयाकजी महाराज आओ भोग लगा ल्यो। इत्ता मैं ई बिन्दयाकजी महाराज आयगा और बोल्या की बुढिया माई खीर बणा ली के। तो बुढिया माई बोली हाँ बणा ली आव जीम ले। जद बिन्दयाकजी बोल्या की मैं तो जीम लियो जद तू भोग लगायो हो। फेर बुढिया माई बोली की हे महाराज मेरा तो पर्दा खोल दिया पण कोई और कै सागै इयाँ मत करज्यो। जद बिन्दयाकजी महाराज बुढिया माई को धन को अटूट भंडार भर दियो अर बोल्या की मैं थारी सात पीढ़्याँ ताणी कोणी नीमङूं।
हे बिन्दयाकजी महाराज जसो बुढिया माई नै दियो..... बसो सगला नै दीज्यो...... कहताँ नै , सुणताँ नै, हुंकारा भरता नै । पीर सासरै मैं सुख शांति राखज्यो।
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थारा बिचार अठे मांडो सा ....