राजस्थानी तीज-त्यूँवार, नेगचार, गीत-नात, पहराण, गहणा-गांठी अर बरत-बडूल्यां री सोवणी सी झांकी है तीज-त्यूँवार...

टाबरिया बी जाणै तीज-त्यूँवार अर नेगचार

आपणी संस्करती अर सभ्याचार नै नुईं पीढ़ी नै सूंपणै री खातर भोत जरूरी है कै  आपां सरुआत सैँ ई टाबरां नैँ आपणा बार-त्यूँवार अर नेगचारां कै बारै मैं बतावां। रीत रिवाज अर धरम दस्तूर नै समझण को सबसूं चोखो मोको आपणा ही तीज-तेवार होवैँ हैं। क्यूंकि आं मोकां माळै टाबरां नै बडा-बूढां रो मान करण सैँ लेर छ्योटा की मनवार करणै तक सगळी सीख मिल सकै है। घर पिरवार का सारा जणा एक सागै न रेवै तो भी अस्यां मोकां माळै भेळा होय  कै त्यूँवार  मनाणा चाये, इसैँ टाबर पिरवार का लोगां नैँ जाणै पिछाणै अर बांसूं आगै भी जुड़ाव राखै। बार- त्यूँवार कै टेम टाबरां नैँ आपणै पैरांण, रांधण अर नेगचार की जाणकारी हंसताँ खेल्ताँ ई मिल जावै है।