राजस्थानी तीज-त्यूँवार, नेगचार, गीत-नात, पहराण, गहणा-गांठी अर बरत-बडूल्यां री सोवणी सी झांकी है तीज-त्यूँवार...

राजस्थानी ठाँव - हमेल

राजस्थान मैं गहणा नैं ठाँव भी कह्यो जाय है | हमेल अठे को पारंपरिक गहणों (ठाँव )है |


हमेल [Hamel]

10 comments:

  1. ए गहणा आजकाल तो देखबा नि कोणी मिले !

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  2. हाँ मैने देखी है ,पहले सोने के रुपयों की हमेल बना करती थी,कंठ का ही एक गहना बजट्टी भी होता था.

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  3. थाँकी राजस्थानी तो बोत चोखी है सा ।और ओ जेवर तो मैं पैली ई बार देख्यो हूँ।

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  4. पारंपरिक गहने और महंगे भी थे |

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  5. व्याह शादियों में ओरतें अभी भी पहनती हैं। हमारी तरफ इसे महेल बोलते हैं.

    मेरे ब्लॉग पर भी आइये ..अच्छा लगे तो ज्वाइन भी कीजिये
    पधारिये आजादी रो दीवानों: सागरमल गोपा (राजस्थानी कविता)

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    काना ने कुंडल ल्यावो रंग रसिया ,म्हारे रखड़ी रत्न जड़ा वो सा हो बालमा।

    सम् दरिया लहरा खावे सा हो बालमा। .....

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  7. yah thikana kab bana ji!
    mai to aaj pahali baar aayee, maza aa gaya :)

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  8. घणी सुंदर प्रस्तुति दी है साय
    इन गहणा ने हमले बोले छः
    एर कोई टेवटो रो नाम सूणो है के
    घणो पसंद आवा हालों गहणो होवे छे
    राजस्थान री शान छः ये गहणा
    ख़म्मा घणी सा।

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थारा बिचार अठे मांडो सा ....