राजस्थानी तीज-त्यूँवार, नेगचार, गीत-नात, पहराण, गहणा-गांठी अर बरत-बडूल्यां री सोवणी सी झांकी है तीज-त्यूँवार...

आसमाता री कहाणीँ

एक आसळियो बावळियो हो। बिकी जुओ खेलबा की बांण ही, अर बो हरबा अर जीतबा दोन्यां का बामण जिमातो। जद बिकी भाभ्याँ बोली की ओ तो हारै तो बामण जिमावै जीतै तो बामण जिमावै, इयाँ कियां पार पड़सी। इनै गाँव मां ई काड दयो। जद आसळियो बावळियो भी घरां सैं निकळकै शहर चल्योगो अर आसमाता की आस माळै बैठगो । फेर तो सारा शहर मैं रोळो होगो की एक जुआ को बड़ो खिलाड़ी आयो है। राजा नै ई बात को बेरो पड्यो तो बीने महल मैं खेलबा बुलायो अर सारो राज-पाट हरगो। आसळियो बावळियो राज करबा लागगो। बठीनै घरां खाबा का नाज का भी टोटा होगा। जद भाई अर भाभ्याँ बीनै खोजबो चालू करयो अर शहर आयगा। बठे बै सुणयो कै कोई आदमी जुए में राज जीतगो। बै सारा नया राजा सैं मिलबा गया अर कह्यो की म्हारो भी एक भाई हो आसळियो बावळियो जिका नै महे घरां सैं काड दियो। जद बो कह्यो कै मैं ई थारो हूँ। थारी करणी हाथ म्हारी करणी म्हारै हाथ।
हे आसा माता बीने दियो जियां ई सगळा नै दीजे। कहताँ सुणतां हुंकारा भरता नै। सुख शांति राखज्ये।

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थारा बिचार अठे मांडो सा ....